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मेरे लिए तो हर मां-बेटी शक्ति का रूप है। मैं इनको शक्ति के रूप में पूजता हूं और इनकी रक्षा के लिए जान की बाजी लगा दूंगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी इंडिया गठबंधन पर मुंबई की रैली में कहा। चुनाव में लड़ाई शक्ति के विनाशकों और शक्ति के उपासकों के बीच है और चार जून को स्पष्ट होने की बात भी की कि कौन शक्ति का विनाश करने वाला है और किसे शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है। दरअसल, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रविवार को भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन के अवसर पर मुंबई में आयोजित रैली में कहा था, हिन्दू धर्म में शक्ति शब्द होता है। हम शक्ति से लड़ रहे हैं, एक शक्ति से लड़ रहे हैं।

हालांकि राहुल ने अपने बयान के विवाद के बाद कहा कि प्रधानमंत्री ने उनकी बातों का अर्थ बदलने की कोशिश की। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया-मैंने गहरी सच्चाई बोली है। जिस शक्ति का मैंने उल्लेख किया, जिस शक्ति से हम लड़ रहे हैं, उस शक्ति का मुखौटा मोदी जी हैं।
मोदी ने किसी का नाम न लेते हुए कहा, ये कहते हैं कि  जिस शक्ति की मैं बात कर रहा हूं, उन्होंने उनका गला पकड़ कर उनको भाजपा की ओर किया है और वह सब डर गए हैं। जाहिर है, लोक सभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही सभी राजनैतिक दल पूरी मशक्कत से जुट गए हैं।

वे आरोपों-प्रत्यारोपों द्वारा, एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल कर तथा निशाने लगा कर जनता को लुभाने के वही पुराने तरीके अपना रहे हैं जिनके बूते अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को जितवाने की संभावनाएं प्रतीत हो रही हों। राहुल गांधी को अभी पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री को अपशब्द कहने पर अदालत से चेतावनी मिल चुकी है। पिछले कई चुनावों से देखने में आ रहा है कि सत्ताधारी दल और विपक्ष चुनावी भाषणों में शालीनता बनाए रखने में चूकते जा रहे हैं। व्यक्तिगत आरोप और छींटाकशी भरे जुमलों का भरपूर प्रयोग होने लगा है। कुछ भी हो नेताओं को भाषा और शब्दों के चयन की खास शालीनता का ख्याल रखना चाहिए।

चुनाव आयोग द्वारा कड़ाई से आदर्श चुनाव संहिता लागू किए जाने के बावजूद नेताओं द्वारा यह चूक होती नजर आती है। शक्ति स्त्री को कहें या सत्ता को, दरअसल यह तो चार जून को मतदाता ही दिखाएगा कि असली शक्ति किसके हिस्से जाती है। यह मूल रूप से इस शक्ति के ही हाथ है कि वह किसे शक्तिवान बनाती है, और किसे शक्तिहीन कर देती है।

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